बुधवार, ३० ऑक्टोबर, २०१९

"औरंगजेबाने दरबारात केलेली शिवस्तुती"

"औरंगजेबाने दरबारात केलेली शिवस्तुती"


कल्पना करा...
       औरंगजेबाचा दरबार असा भरलेला आहे, त्याचे मनसबदार त्याच्या समोर हुद्यानुसार उजव्या हातावर डावा हात ठेवून, खाली मान घालून उभे आहेत. कुणीही हुं कि चुं करायचं नाही, तोंडातून शब्द काढायचा नाही. तुम्हाला अर्ज करायचा असेल तर 'अर्जबेगी' नावाचा प्रकार होता, त्याच्या बरोबर तो अर्ज द्यावा लागे.
       अशा ठिकाणी शिवाजी महाराज कडाडले होते म्हणजे दरबाराची अवस्था काय झाली असेल हे शंभू महादेवच जाणें.

एका बाजूला त्याचे शहजादे उभे आहेत,
...आणि त्याच्या अल्काबाचे नारे चालले आहेत...
'हजरत सलामत, इब्ला ए दिन ओ दुनिया, अबुल मुजफ्फर मोईउद्दीन, महम्मद औरंगजेब, शहेनशहा ए गाझी, आलमगिर बहादुर...
आणि औरंगजेब येतोय आणि येऊन शहजाद्यांना सद्य परिस्थितीची तो जाणीव करून देऊन म्हणतोय...

यह सब फिजुल है शहजादे...
चंगेज और तैमुर के खून ने कभी शिकस्त नही देखी। लेकीन आज कंधारसे तंजोर तक सारे हिंदोस्ताको मुघलीया सल्तनतमें शामिल करनेका ख्वाब देखनेवाले हम ये क्या देख रहे है। हमारी आंखोके सामने सिवा अपने सल्तनत की तामिल कर चुका है। हमारे लांखोंके फौज के सुभेदारोंको शिकस्त देकर खदेड दिया है उसने। ये है हमारे मामुजान, अमिर और उमराह शायस्ता खां साहाब। सबसे शर्मनाक बात तो ये है शहजादे की सिवाने इनके लाल महालपर छापा मारकर इनके छक्के छुडादीये, ये तो तकदीर के सिकंदर निकले के जां बच गई , सिर्फ तीन उंगलीयां ही खोनी पडी इन्हे। ये है हमारे सिपेसालार जसवंतसिंह, जोधपुर महाराजा, मराठोंके वार के जख्म इन्होने अपनी सीनेपे नही अपनी पीठ पे खांए है। ये है सुरतके खूबसूरत सुभेदार इनायतखां बहादुर, सिवा सुरत आए तो ये सुरतसे दुम दबाकर भाग गए। ये है हबशी फौलादखां, जिनकी हतेली पर मिठाई रखकर सिवा आग्राके कैदखानेसे फरार हो गये। हमारे सारे मनसुबोंको खाक में मिला दिया है इस फौलादखांने। ये है कारतलबखां, ये है खां बहादुर खां कोकलताश। तमाम सारे राजपुत, बुंदेल, तुर्क, इराणी, अफगाणी, उजबेगी, हबशी, मुघल फौजमंद सरदार जिन्हे सिवाने शिकस्त दी। सारी इज्जत मीट्टीमें मिलादी। क्यो......क्यो सिवाको ये फतेह हासिल होती है। हमारी तरह फौज, गोलाबारुद, तोफखाना, हाथी, घोडे, खजाना सिवाके पास नही है, फिर भी फतेह हासील होती है उसे? क्यो? इस क्यो का मतलब तुम कभी नही समझ पाओगे शहजादे, तुम कभी नही समझ पाओगे। औरत, शराब, नाचगाने, शिकार, मौजमस्ती और इश्क महोब्बत में गिरफ्तार तुम जैसे बहादूर सिवा को कभी नही समझ पाओगे। इस सिवाने मजबूत किले बनाए, अपनी फौज का हौसला बढाया, नये रस्म के जंग की तामिल की है उसने, लेकीन उससे भी कई जादा उसको चाहने वाले मजबूत जमीर के लोग तैयार किये है उसने। हमने सिवाके लोगोंको लाखोंके जागीरका लालच दिया लेकीन उन जांबाज मराठोंने उसे थुंक दिया। आज तक हम दुनियाकी हर चीज खरीद सकते थे, लेकीन सिवाके उस खुद्दार खादीमोंने खुदको बिकने नही दिया। वे रुकते नही, वे थकते नही, वे झुकते नही और वो बिकते भी नही। सिवा चालाक है, दगाबाज है, नामाकुल है, मग्रुर है, मक्कार है लेकीन उसका चालचलन दुध की तरह साफ और सुरज की तरह चमकदार है। शहजादे...दुश्मन की भी मजहब, मस्जीद, महजबी कला, औरत और फकीरोंकी इज्जत करता है वो। इसलिये उसकी इज्जत और शोहरत बुलंद मिनार की तरह सर उठाए आसमां को छु रही है। इसमे कोई शक नही शहजादे के हम खुषनसीब है हमे दुश्मन भी जो मिला वो सिवा जैसा।

       शिवाजी महाराजांच्या स्वराज्य स्थापनेचं मर्म नाट्यमय रुपातून आलेलं असलं तरी औरंगजेबाने किती मार्मिकतेनं स्पष्ट केलंय.

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